रावण और राजा दशरथ के बीच हुए युद्ध से जुड़ी पौराणिक कथा | Story about War between Ravana and King Dasharatha

रावण और राजा दशरथ के बीच हुए युद्ध

नमस्कार मित्रो आज की अपनी इस पौराणिक कथा की श्रंखला में हम आपको बताने जा रहे है रावण और राजा दशरथ के बीच हुए युद्ध से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में जिसके बारे में आप सभी ने बहुत कम सुना या पढ़ा होंगा | इस कथा का वर्णन हिन्दुओ के पवित्र ग्रन्थ रामायण में मिलता है | चलिए जाने पूरी कथा Story about War between Ravana and King Dasharatha

Contents

रावण और राजा दशरथ के बीच हुए युद्ध से जुड़ी पौराणिक कथा

कौन थे राजा दशरथ 

पौराणिक कथाओ के अनुसार राजा दशरथ सतयुग में अयोध्या के रघुवंशी राजा थे जिनकी कौशल्या, सुमित्रा तथा कैकयी नामक 3 रानी और भगवान राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघन जैसे पराक्रमी पुत्र थे |

कौन था रावण 

पौराणिक कथाओ के अनुसार रावण सारस्वत ब्राह्मण पुलस्त्य ऋषि का पौत्र था और उसके माता-पिता का नाम वरवर्णिनी और विश्रवा था | वह कुबेर का भाई भी था और सोने की लंका का राजा भी | उसे भगवान शिव का परम भक्त भी माना जाता है और ब्रह्मदेव ने उसे वरदान द्वारा असीम शक्तियां भी प्रदान की थी | रामायण के अनुसार उसने माता सीता का हरन किया था |

जाने रावण के अयोध्या पहुँचने से जुड़ी कथा 

पौराणिक कथाओ के अनुसार ये बात उस समय की है जब रावण ने ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया और तीनो लोको और दसो दिशाओ को जीतते हुए पृथ्वी लोक पर सरयू नदी किनारे बसे अयोध्या को भी जीतने की मंशा लिए अपनी सम्पूर्ण दानव सेना के संग जा पहुंचा और आगे की युद्ध सम्बन्धित रणनीति बनाने लगा |

जाने रावण और उसके मामाजी के मध्य हुई वार्तालाप से जुड़ी कथा 

पौराणिक कथाओ के अनुसार जब रावण ने सरयू नदी के तट पर पहुंचकर अपने सेना को वही विश्राम करने का आदेश दिया और अपने मामाजी माल्यवान से कहा कि “मामाश्री हमने दसों दिशाओं के सभी राज्य जीत लिए है और सिर्फ सरयू तट किनारे बसा ये अयोध्या नगर ही शेष रह गया है जिसपर हमे आक्रमण करने से पहले राजा दशरथ के दरबार में अपना दूत भेजना चाहिये | ”यह सुनकर माल्यवान ने रावण ने कहा कि “हे लंकेश दूत भेजने की क्या जरूरत है। राजा दशरथ तो आपसे बलवान भी नहीं है । “ यह सुनकर रावण ने अपने मामाजी को उतर देते हुए कहा कि “मामा श्री यह मत भूलिये की किसी राज्य पर आक्रमण करने से पहले दूत भेजना हमारी राज पद्धति है जिसका हमे हर हाल में पालन करने चाहिये | ” रावण की बात सुनकर उसके मामाजी ने कहा कि “जैसे आकी इच्छा, मेरे विचार से इस काम के लिए आपको मेरे भ्राता मारीच को दशरथ की राजसभा में भेजना चाहिये”।अपने मामाजी की इस बात पर रावण ने भी सहमति जताई।

जाने रावण द्वारा मारीच को अपने संदेशवाहक के रूप में राजा दशरथ के दरबार में भेजने से जुड़ी कथा 

पौराणिक कथाओ के अनुसार रावण ने अपने मामाजी से वार्तालाप के बाद मारीच को अपने संदेशवाहक के रूप में अयोध्या में राजा दशरथ के दरबार में अपना सन्देश देकर भेजा | ये सन्देश मारीच ने राजा दशरथ के दरबार में सुनाते हुए कहा कि “दशानन सरयू तट पर सेना सहित आ पहुंचे हैं और अगली प्रात राजा दशरथ को युद्ध के लिए ललकार रहे है और यदि राजा दशरथ इस युद्ध से बचना और अयोध्या को विनाश से बचाना चाहते है तो अपना मुकुट दशानन रावण के चरणों में रखकर उनकी अधीनता स्वीकार कर ले ।“

जाने मारीच की बाते सुनकर राजा दशरथ द्वारा दिए गये उत्तर से जुड़ी कथा 

पौराणिक कथाओ के अनुसार रावण के दूत मारीच की बाते सुनकर राजा दशरथ क्रोधित हो उठे और उससे बोले कि “हम रघुवंशी ना कभी किसी के आगे झुके है और ना ही युद्ध करने से पीछे रहे है और हमें अपने राज्य की रक्षा करना भी आता है। इसलिए तुम जाओ और दशानन से कहो कि वो अगले दिन युद्ध के लिए तैयार रहें, राजा दशरथ अब उनसे युद्ध क्षेत्र में ही मिलेंगे।“ 

जाने रावण और राजा दशरथ के मध्य हुए भीषण युद्ध की कथा 

पौराणिक कथाओ के अनुसार राजा दशरथ के जवाब को सुनकर मारीच रावण के पास लौट आया और उसको सारी बात बताई जिसके बाद दोनों ही फौज समेत अगले दिन युद्ध क्षेत्र में एक दूसरे के आमने-सामने आ गये | जब राजा दशरथ और रावण एक दूसरे के सामने थे तब राजा दशरथ ने उसको युद्ध रोकने के लिए एक बार समझाने की कोशिश भी की लेकिन अहंकारी रावण नही माना और दोनों प्रतापी राजाओ के मध्य भयंकर युद्ध होने लगा और पर राजा दशरथ की फौजों की संख्या जल्दी ही कम होने लगी तभी राजा दशरथ ने अपने तरकश से एक दिव्य बाण निकाला और उसे मंत्रो से सिद्ध कर धनुष की प्रत्यंचा पर चढ़ाया । 

जाने ब्रह्माजी द्वारा रावण और राजा दशरथ का युद्ध रोके जाने से जुड़ी कथा 

पौराणिक कथाओ के अनुसार जैसे ही राजा दशरथ उस मन्त्रयुक्त बाण को रावण की ओर छोड़ने को मोड़ा तभी ब्रह्माजी वहां प्रकट होते है और राजा दशरथ को ऐसा करने से रोकते हुए कहते है कि “हे राजा दशरथ तुम अपना ये बाण रावण के ऊपर ना चलाकर ब्रह्माण्ड में छोड़ दो क्योंकि रावण को साक्षात् शिवशंकर का वरदान प्राप्त है की उसे युद्ध में कोई पराजित नहीं कर सकता । उसकी पराजय उसी दिन होगी जिस दिन उसकी मृत्यु होगी जिसका समय अभी नही आया है और रावण को मै खुद समझा दूंगा ।

राजा दशरथ ने ब्रह्मदेव के आदेश का मान रखते हुए वही करा जो उन्होंने उनसे कहा | इसके बाद ब्रह्मदेव ने रावण को समझाते हुए कहा कि वो और दशरथ दोनों ही अवध्य है । यदि दशानन पर महादेव का वरदान है तो राजा दशरथ का तूणीर भी दिव्य शक्तियों से भरा हुआ है और ये राज्य तो वो बिना युद्ध करे ही जीत लेगा क्योंकि दशरथ अब वृद्धावस्था में हैं और ना ही दशरथ की कोई संतान है और दशरथ के ना होने के बाद यह राज्य रावण का हो जाएगा | वो  लंका लौट जाए जहाँ तुम्हें एक शुभ समाचार उसकी प्रतीक्षा कर रहा है और युद्ध को खत्म करे | रावण ने भी ब्रह्मदेव के आदेश का मान रखा और समस्त सेना समेत लंका लौट गया जहाँ उसे पता चला कि उसकी पत्नी मंदोदरी ने माँ बनने वाली है और कुछ समय बाद ही उसको इंद्रजीत नामक एक पुत्र की प्राप्ति हुई |

 तो अंत में रावण और राजा दशरथ के बीच हुआ युद्ध ब्रह्मदेव के हस्तक्षेप के कारण बिना किसी परिणाम के खत्म हो गया |

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