बसंत पंचमी क्या है, क्यों मनाई जाती है और कैसे मनाई जाती है ? Saraswati Puja Basant Panchami

Basant Panchami

बसंत पंचमी जिसे श्री पंचमी के नाम से भी जाना जाता है, हिन्दुओं का त्यौहार है, जिसमे  विद्या की देवी माँ सरस्वती की पूजा अर्चना (Saraswati Puja) की जाती है। बसंत पंचमी (Basant Panchami) लगभग पूरे भारतवर्ष में मनाई जाती है, विशेषकर राधा स्वामी मानने वाले लोग इसे धूम धाम से मानते हैं।

Saraswati Puja | Basant Panchami ; बसंत पंचमी क्या है, क्यों मनाई जाती है और कैसे मनाई जाती है आइयें जानते हैं – 

Saraswati Puja यानि Basant Panchami एक भारतीय त्यौहार है जो अलग अलग तरीकों से बसंत के आगमन के तैयारी के रूप में मनाया जाता है। बसंत ऋतु  आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। इस दिन विद्या के देवी माँ सरस्वती की वंदना की जाती है। इस दिन माँ सरस्वती का आविर्भाव दिवस माना जाता है।

बसंत पंचमी मानाने को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। माना जाता है की इस दिन श्री कृष्ण ने देवी सरस्वती को वरदान दिया था की कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी और तभी से इस वरदान के फलस्वरूप भारत देश में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी इसलिए बसंत पंचमी को माँ सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है।

यह भी माना जाता है की सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान शिव की आज्ञा से भगवान ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। ब्रह्मा जी ने इस सृस्टि की स्थापना की तो वो अपने द्वारा रचित सृस्टि को देखने के लिए निकले। उन्होंने देखा की सब तरफ ख़ामोशी छाई हुई है, ऐसा लगा मानो किसी के पास आवाज़ ही नहीं है। इस त्रुटि को दूर करने के लिए उन्होंने अपने कमंडल से जल निकला और मंत्रोचरण कर उसे सृस्टि के चारों और छिड़क दिया। तभी एक देवी के आकृति प्रकट हुई। उस देवी की चार भुजा थीं। अपने दो हाथों के वो वीणा बजा रही थी और बाकि दो हाथों में एक में पुस्तक और दूसरे में एक माला लिए हुए थी। उन देवी की वीणा के संगीत को सुनकर सभी जीवों को आवाज़ मिल गई। उनके द्वारा जीवों को ज्ञान मिला और वो बोलने लगे। तभी से उन्हें ज्ञान की देवी कहा जाने लगा और उनके नाम सरस्वती हुआ। सरस्वती को वागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं।

ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-

प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।

अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है।

वसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती की पूजा करने से विद्यार्थियों को बुद्धि और विद्या का वरदान मिलता है। इस दिन लोग पीले वस्त्र पहनते हैं और पीले रंग के फूलों से मां सरस्वती की पूजा अर्चना करते हैं। इस दिन कई स्कूल कॉलेजों में भी सरस्वती पूजा की जाती है। इस दिन वाद्य यंत्रों और किताबों की पूजा की जाती है। इस दिन पीले चावल या पीले रंग का भोजन किया जाता है। बंगाल में इस दिन पीले रंग की खिचड़ी बनाई जाती है। शास्त्रों के अुनसार वसंत पचंमी से सर्दी कम हो जाती है और गर्मी के आगमन की आहट मिलने लगती है। वसंत पंचमी तिथि को शादी-विवाह, गृह प्रवेश आदि कार्यों के लिए शुभ माना जाता है।

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