आज की अपनी इस पौराणिक कथाओ के लेख में हम आपको जानकारी देंगे राजा नृग के उद्धार से जुड़ी पौराणिक कथा जिसके बारे में आप में से बहुत ही कम लोगो ने सुना ये पढ़ा होंगा | इस पौराणिक कथा का वर्णन श्रीमद्भागवत पुराण के चौसठवें अध्याय में भी आपको पढ़ने को मिल जायेंगा | चलिए जाने पूर्ण कथा विस्तार से
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जानिए ! कौन थे राजा नृग
राजा नृग प्राचीन काल में धरती पर इक्ष्वाकु के पुत्र और एक प्रतिष्ठित और महान राजा थे जो पूरे संसार में अपने दान-पुण्य के लिए विख्यात थे | ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने पृथ्वी में मौजूद धूलिकण , आकाश में मौजूद तारे और वर्षा में मौजूद जल की धाराओ के बराबर दुधार, नौजवान, सुन्दर औ र कपिला गाय उनके बछड़े के साथ दान में दी थी | यहीं नही उन्होंने इन सब गायो को दान करते वक़्त उनके सींगों में सोना, खुरों में चांदी और शरीर पर वस्त्र, हार और गहनों से सजाकर दान किया था | इस प्रकार उन्होंने बहुत सा सोना, घर, घोड़े, हाथी, चांदी, रत्न, गृह-सामग्री और रथ आदि दान किये | जनसमाज के कल्याण के लिए बहुत से कुएं, बावली आदि बनवाए और साथ ही साथ समस्त पृथ्वीलोक की भलाई के लिए अनगिनत यज्ञ किये |
जानिए ! राजा नृग के गिरगिट बनने से जुड़ी कथा
पौराणिक कथाओ के अनुसार एक दिन किसी दान न लेने वाले तपस्वी ब्राह्मण की एक गाय बिछुड़कर उनकी गायो में आ मिली जिस बात का राजा नृग को कतई ज्ञान नही था और उन्होंने उस गाय को किसी दूसरे ब्राह्मण को दान कर दिया।
जब वो दान प्राप्त करने वाले ब्राह्मण उस गाय को लेकर जा रहे थे तभी उस गाय के असली ब्राह्मण स्वामी ने मार्ग में अपनी गाय को पहचान लिया और उस दान प्राप्त करने वाले ब्राह्मण से विवाद करने लगे | इसके बाद जब उन दान प्राप्त करनेवाले ब्राह्मण ने उस गाय के असली ब्राह्मण स्वामी को बताया कि ये गाय उन्हें राजा नृग ने दान में दी है तब वो दोनों राजा नृग के दरबार में पहुँचे और सारा क़िस्सा बताया |
उन दोनों की बाते सुनकर राजा नृग को अपनी गलती का एहसास हुआ और धर्मसंकट और अपराधबोध से बचने के लिए वो उन दोनों ब्राह्मणों से क्षमायाचना करते हुए उस गाय के बदले एक –एक लाख उत्तम गाय देने की बात करने लगा और उस गाय को वापिस मांगने लगा लेकिन दोनों ब्राह्मण ने राजा से कोई भी गाय दान में लेने से मना कर दिया और बिना कुछ दान लिए उसके दरबार से चले गये |
इसके कुछ वर्ष बाद जब राजा नृग ने अपने प्राण त्यागे और यमराज राजा नृग को प्राण त्यागने के बाद यमपुरी ले गये और वहां जाकर राजा से पूछा कि वो अपने पाप का फल भोगना चाहते हो या पुण्य का | तब राजा नृग ने अपने द्वारा अनजाने में किये गये पाप का फल भोगने की इच्छा जाहिर कि जिसके बाद वो गिरगिट बनकर एक कुएँ में जा गिरे |
जानिए ! भगवान श्री कृष्णा द्वारा राजा नृग के उद्धार से जुड़ी कथा
पौराणिक कथाओ के अनुसार एक बार प्रद्युम्न, चारुभानु और गदा आदि यदुवंशी राजकुमार घूमने के लिये उद्यान में गये और तब उन्हें वहां प्यास लगी तो जल की खोज में उस कुएँ के पास जा पहुँचे जिसमे राजा नृग गिरगिट के रूप में रह रहे थे |
उस कुएँ में ऐसा विचित्र जीव देखकर उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ और वो राजकुमार उस जीव को वहाँ से निकालने की कोशिश करने लगे काफी कोशिश के बाद जब वो अपने प्रयास में असफल हुए तब उन्होंने श्री कृष्ण के पास जाकर सारी बात बताई | इसके बाद श्री कृष्ण उस कुएँ के पास आये और अपने बायें हाथ से आसानी से उस जीव को बाहर निकाल लिया |
श्री कृष्ण की हथेली का स्पर्श होते ही राजा नृग गिरगिट के रूप से अपने असली रूप में आ गये | अपने असली रूप में आते ही उनके शरीर का रंग सोने के समान चमकने लगा और साथ ही उनके शरीर पर अद्भुत वस्त्र, आभूषण और फूलों का हार भी दिख रहा था ।
हालांकि श्री कृष्ण सम्पूर्ण गाथा जानते थे लेकिन अपने मानव रूप में होने के कारण उन्होंने उस दिव्य पुरुष से पुछा कि “हे महाभाग ! तुम्हारा रूप तो बहुत ही सूंदर है। तुम कौन हो ? मैं ऐसा समझता हूँ कि तुम अवश्य ही कोई श्रेष्ठ देवता हो। कृपा कर यह तो बताओ कि किस कर्म के फल से तुम्हे इस योनि में आना पड़ा था ? वास्तव में तुम इसके योग्य नहीं हो। हम लोग तुम्हारा वृतांत जानना चाहते हैं। यदि तुम हमलोगों को वह बतलाना उचित समझो तो अपना परिचय अवश्य दो।“ तब राजा नृग ने श्री कृष्णा को अपने से सम्बन्धित सम्पूर्ण कथा बताई और उनसे कहा कि “अपने द्वारा किये गये पूर्वाज्न्म किये उत्क्रष्ट कार्यो से उनकी पूरी स्मृति नष्ट नही हुई और वो बरसो से अपनी इस योनी में श्री कृष्ण का ध्यान करते रहे जिससे उनके दर्शन से राजा का भला हो सके |”अंत में राजा नर्ग ने श्री कृष्ण की परिक्रमा की और देवताओं के लोक में जाने के लिए प्रस्थान किया |
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