चिंतन करें चिंता नहीं ! चिंता और चिंतन में अंतर – कैसे करें चिंतन

चिंतन करें चिंता नहीं

मन में उठ रहे विचारों में जब घबराहट, बैचेनी और भविष्य को लेकर फ़िक्र का बीज पड़ जाता है तो धीरे धीरे चिंता नाम का बीज उगने लगता है और बुद्धि को ही नहीं बल्कि शरीर को भी खोखला कर देता है। चिंता हमारी चतुराई को खा जाती है। जहाँ एक और चिंता चिता के समान होती है वही चिंतन हमारे जीवन में प्रकाश बनकर सही मार्ग दिखता है। तो चिंता नहीं चिंतन करें। 

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चिंता Vs चिंतन 

जहाँ एक और चिंता से बुद्धि का नाश होता है वहीं चिंतन से हमारी बुद्धि का विकास होता है। एक ओर  चिंता करने वाले व्यक्ति के जीवन का नाश होने लगता है। जबकि चिंतन करने वाले व्यक्ति के मस्तिष्क का विकास होने लगता है।

चिंता क्यों होने लगती है 

इस तेज़ रफ़्तार की ज़िन्दगी में व्यक्ति भागता रहता है, प्रतिस्पर्धा, सुख, सम्पन्नता भरा जीवन जीने के चाह, ज़िम्मेदारियों को बोझ चिंता के रूप में व्यक्ति को अंदर ही अंदर परेशान करती रहती है।  

चिंता में मनोरोग है जो काम, क्रोध, मोह-माया, इर्षा, आत्मविश्वास की कमी को उत्त्पन्न करती है और हमारे जीवन को अंधकारमय बना देती है। 

चिंता और चिंतन में अंतर 

हम सभी के दिमाग में विचारों की हलचल स्वाभाविक है। पर यह भी समझना जरूरी है  किस तरह के विचार हमारे मन में उपज रहे हैं और उन विचारों के प्रति हमारी क्या प्रतिक्रिया है। 

हालाँकि विचार आना स्वाभाविक है। यही विचार अगर सकारात्मक रूप रखते हैं तो हमें शक्ति देते हैं, हमारी रचनात्मकता को बढ़ाते हैं, हमें नया रास्ता दिखाते हैं, हमारे आत्मविश्वास को जागते हैं और जीवन की सफलता से हमारी पहचान कराते हैं। 

यदि विचारों में भय, अनिश्चितता हो तो यह चिंता को जन्म देते हैं जो मति को भ्रष्ट कर देते हैं।  चिंता के कारण व्यक्ति योग्य होने के बाबजूद अपने को अयोग्य महसूस करता है। इसलिए जब एक नकारात्मक विचार शुरू हुआ और हद से आगे गया तो चिंता बन जाती है। लेकिन जब एक विचार आत्मविश्वास, समझ और संकल्पशक्ति को जन्म देता है तो वह चिंतन बन जाता है।  

चिंतन में भविष्य की चिंता नहीं बल्कि भविष्य का स्वागत होता है !

चिंता और चिंतन में अंतर 

1 – किसी भी परेशानी को लेकर चिंता नहीं बल्कि उसके हल के बारे में गहराई से सोचना चिंतन है। 

2- मन में उठ रहे प्रश्नों से विचलित होना चिंता है जबकि प्रश्नों का उत्तर ढूंढना चिंतन है।

3- चिंता भय को जन्म देती है जबकि चिंतन भयमुक्त करता है। 

4- चिंता चतुराई को खा जाती है जबकि चिंतन आत्म अवलोकन कराती है। 

5- चिंता हमारे ज्ञान को अज्ञान में बदल देती है जबकि चिंतन सीखने की प्रक्रिया होती है। 

6- चिंता मन को बेचैन करती है जबकि चिंतन द्वारा हम शांत भाव में बैठकर किसी समस्या या बिंदु के बारे में विचार करते हैं। 

7- चिंता एक बोझ होती है जबकि चिंतन हमारे मन के बोझ को हल्का कर देती है। 

8- चिंता दिशा से भटका देती है जबकि  चिंतन हमारे जीवन को नई दिशा देता है। 

9- चिंता करके हम केवल बुराइयों को देख सकते हैं जबकि चिंतन द्वारा हम बड़ी से बड़ी परेशानियों के बीच छुपे अवसर और अच्छाई को देख सकते हैं।

10- चिंता ज़िम्मेदारियों से भागना सिखाती है जबकि चिंतन द्वारा हम अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते हैं।

चिंतन कैसे करें  

चिंता और चिंतन एक ही मां की दो संतानें है। चिंता करने वाला व्यक्ति दुखी रहता है और सफल नहीं होता। चिंता हमेशा असफलता की ओर धकेलती है। लेकिन जब मनुष्य चिंता छोड़ कर चिंतन करते हैं तो मनुष्य सफल होते हैं। 

चिंतन  अचानक से होने वाली प्रक्रिया नहीं है क्योंकि चिंता तो स्वाभाविक होती है जबकि चिंतन  के लिए अभ्यास किया जाता है। निरंतर अभ्यास द्वारा मनुष्य चिंतन करने लगता है और अपनी निर्धारित मंजिल पर  पहुंच जाता है। 

चिंतन में व्यक्ति विचारों को तर्क वितर्क के रूप में लेता है। परिस्थिति को देखकर अपने आपसे प्रश्न करता है और फिर उसका हल खोजता है।  

चिंतन एक प्रक्रिया है जिसमें पहले क्रम में व्यक्ति समस्याओं  की और ध्यान केंद्रित करता है और दूसरे क्रम में उसके हल को ढूंढता है। 

चिंता और चिंतन में एक महत्वपूर्ण अंतर यह भी है कि चिंता से परेशानी के बारे में व्यक्ति विचार करता है उसके मन में प्रश्नों की कतार लग जाती है। लेकिन मन में भय और आत्मविश्वास ना होने के कारण वह सिर्फ समस्यों को देखता है और हल खोजने की बजाय सवालों में ही उलझ कर रह जाता है। 

चिंतन एक ऐसा माध्यम है जिसमें व्यक्ति खुले दिमाग से मन में उठ रहे सवालों को हल करता है। 

चिंतन के अभ्यास के लिए कुछ सहायक बातें !

1 – नियमित ध्यान करें। 

2 – नकारात्मक विचारों से बचें। 

3 – समस्याओं / असफलता को स्वीकार करें और आगे बढ़ने के सीख लें। 

4 – अपने आप से सकारात्मक बातें करें 

5 – अपने आप से प्रश्न पूछे  एवं उनके उत्तर दें।  

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