गंगा दशहरा मनाने के पीछे पौराणिक कथा | Ganga Dussehra Pauranik Katha

Ganga Dussehra Pauranik Katha

हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार गंगा दशहरा ज्येष्ठ शुक्ला दशमी को मनाया जाता है। गंगा दशहरा क्यों मनाया जाता है इसके पीछे एक पौराणिक कथा Ganga Dussehra Pauranik Katha है। आइये जानते हैं ; Ganga Dussehra Story Hindi ..

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गंगा दशहरा ; पौराणिक कथा
Ganga Dussehra Pauranik Katha

गंगा दशहरा पर्व सनातन संस्कृति का एक पवित्र त्योहार है। धार्मिक मान्यता के अनुसार माना जाता है की  इस दिन ‘माँ गंगा’ का धरती पर आगमन हुआ था। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार गंगा दशहरा मनाने के पीछे एक पौराणिक कथा पप्रचलित है। 

Ganga Dussehra Pauranik Katha In Hindi 

राजा समर का  अश्वमेध यज्ञ

सत्य युग में, अयोध्या नगरी में सगर नाम के एक महाप्रतापी राजा थे जो सूर्यवंश राज-कुल पर शासन करता थे। उन्होंने सातों समुद्रों को जीतकर अपने राज्य का विस्तार किया। राजा सगर भागीरथ के पूर्वज थे। उनकी केशिनी तथा सुमति नामक उनकी दो रानियां थीं। पहली रानी के एक पुत्र असमंजस का उल्लेख मिलता है, और दूसरी रानी सुमति के साठ हजार पुत्र थे।

एक बार राजा सगर ने अपनी उत्कृष्टता और संप्रभुता साबित करने के लिए अश्वमेध यज्ञ किया और यज्ञ पूर्ति के लिए एक घोड़ा छोड़ा। यज्ञ के परिणामों और चिंता व भय के कारण भगवान इंद्र डर गए और उन्होंने उस यज्ञ को भंग करने के लिए उस अश्व का अपहरण कर लिया और उसे कपिल मुनि के आश्रम में बांध आए। 

कपिल मुनि का श्राप 

जब राजा सगर को इस बात का पता चला तो उसे खोजने के लिए अपने साठ हजार पुत्रों को भेजा। काफी दिनों तक खोजने के बाद जब उन्हें इस बात की जानकारी हुई कि घोडा कपिल मुनि के आश्रम में तो  उन्होंने सोचा की कपिल मुनि ने ही यह काम किया है ऐसा सोच सोच क्रोधित राजा सगर ने अपने साठ हजार पुत्रों को कपिल मुनि पर हमला करने के लिए कहा।

जब राजा सगर के पुत्र कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचे तो वहां उन्होंने देखा की महर्षि कपिल तपस्या कर रहे हैं और उन्हीं के पास उनका अश्व (घोडा) घास चर रहा है। सगर के पुत्र यह देखकर चोर-चोर चिल्लाने लगे।

राजा के सभी पुत्र पवित्र ऋषि पर हमला करने वाले थे, लेकिन इससे पहले ही महर्षि कपिल की समाधि टूट गई और जब मुनि ने यह देखा तो उन्हें क्रोध आ गया और उन्होने सभी को श्राप दे दिया और परिणामस्वरूप, वे सभी जलकर भस्म हो गए।

भगवान ब्रह्मा का आवाहन

राजा सगर का पौत्र अंशुमान अपने पितृव्य चरणों को खोजता हुआ जब कपिल मुनि के आश्रम में पंहुचा तो कपिल मुनि ने उसके  पितृव्य के भस्म होने का सारा वृत्तांत सुनाया। उन्होंने यह भी बताया कि यदि वह अपने सभी पितृव्य की मुक्ति चाहता है तो गंगाजी को स्वर्ग से धरती पर लाना होगा।

उन्होंने अंशुमान को घोडा लोटा दिया और कहा इस समय अश्व को ले जाकर अपने पितामह के यज्ञ को पूर्ण कराओ, उसके बाद यह कार्य करना होगा। अंशुमान ने घोड़े सहित यज्ञमंडप पर पहुंचकर सगर से सारा वृत्तांत कह सुनाया। महाराज सगर की मृत्यु के उपरांत अंशुमान और उनके पुत्र दिलीप जीवन पर्यंत तपस्या करके भी गंगाजी को मृत्युलोक में ला न सके।

भागीरथ की कठोर तपस्या 

उसके बाद सगर के वंश में अनेक राजा हुए, सभी ने साठ हजार पूर्वजों की भस्मी के पहाड़ को गंगा के प्रवाह के द्वारा पवित्र करने का प्रयत्न किया, किंतु वे सफल न हुए। अंत में महाराज दिलीप के पुत्र भागीरथ ने गंगाजी को इस लोक में लाने के लिए गोकर्ण तीर्थ में जाकर कठोर तपस्या की। आखिरकार युगों के बाद, भगवान ब्रह्मा ने उन्हें आश्वासन दिया कि देवी गंगा पृथ्वी पर अवतरित होंगी और उनकी मदद करेंगी।

भगवान शिव का गंगा को अपनी जटाओं में धारण

भगवान ब्रह्मा ने उन्हें यह भी कहा कि गंगाजी के वेग को संभालने की शक्ति केवल भगवान शिव में है। इसलिए उचित यह होगा कि गंगा का भार एवं वेग संभालने के लिए भगवान शिव का अनुग्रह प्राप्त कर लिया जाए।भगवान ब्रह्मा ने भागीरथ को भगवान शिव से अपने बालों से नदी को छोड़ने का अनुरोध करने के लिए कहा।

गंगा का पृथ्वी पर आना

भागीरथ की भक्ति और सच्ची तपस्या के कारण, भगवान शिव सहमत हो गये और भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में धारण कर लिया। इस तरह गंगा पृथ्वी पर आईं और उनके पूर्वजों की आत्माओं को शुद्ध किया। राजा भगीरथ की गंगा को पृथ्वी पर लाने की कोशिशों के कारण इस नदी का एक नाम भगीरथी भी है।

इस प्रकार इस Ganga Dussehra Pauranik Katha का अनुसार इसी दिन गंगा धरती पर आई और तब से  गंगा दशहरा मनाने की शुरुआत हुई।   इसमें स्नान, दान, व्रत तथा पूजन होता है। इस दिन लोग गंगा में स्नान करते हैं जिससे उन्हें सभी संतापों से मुक्ति मिलती हैं और हमारे तन के साथ साथ मन की भी शुद्धि हो जाती है। 

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