मीरा बाई के पद और दोहे अर्थ सहित Meera Bai Pad Dohe With Meaning Hindi

Meera Bai Pad Dohe

मीरा बाई भक्ति शाखा की मुख्य कवयित्री, संत और गायक थीं। उन्हें हम सब  भगवान श्री कृष्ण की दीवानी के रूप में भी जानते हैं। आज इस आर्टिकल में हम मीरा बाई के पद और दोहे Meera Bai Pad Dohe हिंदी अर्थ के साथ Meera Bai Pad Dohe With Meaning In Hindi जानेंगें। 

Meera Bai Pad Dohe With Meaning In Hindi 

श्री कृष्ण से अत्याधिक प्रेम करने वाली मीरा का जन्म राजस्थान के मेरटा शहर नज़दीक गाँव कुड़की में 1516 ईसवी में हुआ था। बचपन में मीरा अपने पिता जी की कृष्ण भक्ति से बहुत प्रभावित थीं। जिस कारण  वह दुनिया के सबसे बड़े प्रेम स्वरूप श्री कृष्ण की सबसे बड़ी साधक हो गईं। 

उनकी शादी राणा सांगा के बड़े पुत्र भोज राज के साथ हुई । परन्तु वह  इस शादी से ख़ुश नहीं थीं क्योंकि श्री कृष्ण से अत्याधिक प्रेम करने वाली मीरा को पूरा संसार कृष्णमय लगता था। मीराबाई को श्री कृष्ण के अलावा और कुछ भी अच्छा नहीं लगता था। 

भोज राज 1527 में लड़ाई में मारे गए। उस समय सती प्रथा की परम्परात थी। लोगों ने उनसे भी उनके पति के साथ सती हो जाने के ज़ोर दिया, लेकिन मीराबाई ने सती होना स्वीकार नहीं किया।  उसके बाद उसको अपने ससुराल परिवार में बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। 

श्री कृष्ण की साधक मीराबाई को संसारिक मोह-माया से कोई लगाव नहीं था अर्थात वे हमेशा सांसारिक सुखों से दूर रहती थी। सारे राज – पाट छोड़ वह जोगन की तरह रहने लगी। वह कृष्ण की भक्ति में पूरी तरह से डूब गई। मीराबाई श्री कृष्ण की भक्ति में सराबोर होकर गीत गया करती थीं। उनके गुरू संत रविदास जी थे। 

संत मीराबाई की श्री कृष्ण के प्रति उनका प्रेम और भक्ति, उनके द्वारा रचित कविताओं के पदों और छंदों मे साफ़ देखने को मिलती है। उन्होंने सैंकड़ो दोहों और गीतों रचना की है।  आज इस आर्टिकल में हम आपके समक्ष  उन सैकड़ों कृतियों में से कुछ Best  Meera Bai Pad Dohe With Meaning को प्रस्तुत कर रहे हैं। हर दोहे के अर्थ को बहुत सरल और आकर्षक ढंग से लिखने का पूरा प्रयास किया है। आइयें जानते हैं मीरा बाई के पद और दोहे अर्थ सहित

Meera Bai Pad Dohe Vyakhya Sahit

मीरा बाई के पद और दोहे व्याख्या सहित

दोहा/पद: 1 

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरों न कोई। 

जाके सिर मोर मुकट मेरो पति सोई।। 

व्याख्या : इस दोहे में  मीरा बाई  श्री कृष्ण को अपना पति कह रही हैं और कहती हैं – मेरे तो बस श्री कृष्ण हैं जिसने पर्वत को ऊँगली पर उठाकर गिरधर नाम पाया। उसके अलावा मैं किसी को अपना नहीं मानती। जिसके सिर पर मौर का पंख का मुकुट हैं वही हैं मेरे पति। 

 

दोहा/पद: 2 

माई री! मै तो लियो गोविन्दो मोल।

कोई कहे चान, कोई कहे चौड़े, लियो री बजता ढोल।।

कोई कहै मुन्हंगो, कोई कहे सुहंगो, लियो री तराजू रे तोल।

कोई कहे कारो, कोई कहे गोरो, लियो री आख्या खोल।।

याही कुं सब जग जानत हैं, रियो री अमोलक मोल।

मीराँ कुं प्रभु दरसन दीज्यो, पूरब जन्म का कोल।।

व्याख्या : इस पद  माध्यम से मीरा बाई अपनी सखी से कहती हैं कि,  माई मेने श्री कृष्ण को मोल ले लिया हैं। कोई कहता हैं, अपने प्रियतम को चुपचाप बिना किसी को बताए पा लिया हैं। कोई कहता हैं, खुल्लमखुला सबके सामने मोल लिया हैं। मै तो ढोल-बजा बजाकर कहती हूँ बिना छिपाव दुराव सभी के सामने लिया हैं। कोई कहता हैं, तुमने सौदा महंगा लिया हैं तो कोई कहता हैं सस्ता लिया हैं। अरे सखी मेने तो तराजू से तोलकर गुण अवगुण देखकर मौल लिया हैं। कोई काला कहता हैं तो कोई गोरा मगर मैने तो अपनी आँखों को खोलकर यानि सोच समझकर कृष्ण को खरीदा हैं।

 

दोहा/पद: 3  

पायो जी मैंने राम रतन धन पायो !

वस्तु अमोलिक दी मेरे सतगुरु किरपा करि अपनायो। पायो जी मैंने…

जनम जनम की पूंजी पाई जग में सभी खोवायो। पायो जी मैंने…

खरचै न खूटै चोर न लूटै दिन दिन बढ़त सवायो। पायो जी मैंने…

सत की नाव खेवटिया सतगुरु भवसागर तर आयो। पायो जी मैंने…

मीरा के प्रभु गिरिधर नागर हरष हरष जस गायो। पायो जी मैंने…

व्याख्या : इस पद / दोहे में कृष्ण की दीवानी मीरा बाई कहती हैं कि मुझे राम रूपी बड़े धन की प्राप्ति हुई है। मेरे सद्गुरु ने मुझपर कृपा करके ऐसी अमूल्य वस्तु भेट की हैं, उसे मैंने पूरे  मन से अपना लिया हैं। उसे पाकर मुझे लगा मुझे ऐसी वस्तु प्राप्त हो गईं हैं, जिसका जन्म-जन्मान्तर से इन्तजार था। अनेक जन्मो में मुझे जो कुछ मिलता रहा हैं बस उनमे से यही नाम मूल्यवान प्रतीत होता हैं। जब से यह नाम मुझे प्राप्त हुआ है मेरे लिए दुनियां की अन्य चीज़े खो गई हैं। इस नाम रूपी धन की यह विशेषता हैं कि यह खर्च करने पर कभी घटता नही हैं, न ही इसे कोई चुरा सकता हैं, यह दिन पर दिन बढता जाता हैं। यह ऐसा धन हैं जो मोक्ष का मार्ग दिखता हैं। इस नाम को अर्थात श्री कृष्ण को पाकर मीरा ने ख़ुशी – ख़ुशी से उनका गुणगान किया है।

 

दोहा/पद: 4  

राह तके मेरे नैन

अब तो दरस देदो कुञ्ज बिहारी

मनवा हैं बैचेन

नेह की डोरी तुम संग जोरी

हमसे तो नहीं जावेगी तोड़ी

हे मुरली धर कृष्ण मुरारी

तनिक ना आवे चैन

राह तके मेरे नैन ……..

मै म्हारों सुपनमा

लिसतें तो मै म्हारों सुपनमा

व्याख्या : श्री कृष्ण की भक्ति में लीन रहने वाली मीराबाई जी अपने भजन में भगवान् कृष्ण से विनती कर रही हैं कि हे कृष्ण ! मैं दिन रात तुम्हारी राह देख रही हूँ। मेरी आँखे तुम्हे देखने के लिए बैचेन हैं मेरे मन को भी तुम्हारे दर्शन की ही ललक हैं। मैंने अपने नैन केवल तुम से मिलाये हैं अब ये मिलन टूट नहीं पायेगा। तुम आकर दर्शन दे जाओं तभी मुझे चैन ही मिलेगा। 

 

दोहा/पद: 5   

मन रे परसी हरी के चरण

सुभाग शीतल कमल कोमल

त्रिविध ज्वालाहरण

जिन चरण ध्रुव अटल किन्ही रख अपनी शरण

जिन चरण ब्रह्माण भेद्यो नख शिखा सिर धरण

जिन चरण प्रभु परसी लीन्हे करी गौतम करण

जिन चरण फनी नाग नाथ्यो गोप लीला करण

जिन चरण गोबर्धन धर्यो गर्व माधव हरण

दासी मीरा लाल गिरीधर आगम तारण तारण

मीरा मगन भाई

लिसतें तो मीरा मगनभाई

व्याख्या : कृष्ण दीवानी मीरा बाई  ने इस दोहे के माध्यम से यह बताया है कि उन्होंने संसारिक मोह-माया का त्याग कर दिया है और अपने मन को पूरी तरह से श्री कृष्ण के चरणों में समर्पित कर दिया है। ऐसे कृष्ण जिनका मन शीतल हैं| जिनके चरणों में ध्रुव हैं। जिनके चरणों में पूरा ब्रम्हांड हैं पृथ्वी हैं और जिनके चरणों में शेष नाग हैं, जिन्होंने गोवर धन को उठा लिया था। ये दासी मीरा का मन उसी हरी के चरणों, उनकी लीलाओं में लगा हुआ हैं। 

 

दोहा/पद: 6  

मै म्हारो सुपनमा पर्नारे दीनानाथ।

छप्पन कोटा जाना पधराया दूल्हो श्री बृजनाथ।

सुपनमा तोरण बंध्या री सुपनमा गया हाथ।

सुपनमा म्हारे परण गया पाया अचल सुहाग।

मीरा रो गिरीधर नी प्यारी पूरब जनम रो हाड।

मतवारो बादल आयो रे।

लिसतें तो मतवारो बादल आयो रे।।

व्याख्या : इस दोहा/पद में मीरा बाई कहती हैं कि उनके सपने में श्री कृष्ण दुल्हे राजा बनकर पधारे आये थे। सपने में तोरण बंधा था जिसे श्री कृष्ण ने हाथों से तोड़ा था। सपने में मीरा ने कृष्ण के पैर छुये और सुहागन बनी।

 

दोहा/पद: 7   

हरि तुम हरो जन की भीर। 

द्रोपदी की लाज राखी, तुम बढायो चीर।।

भक्त कारण रूप नरहरि, धरयो आप शरीर। 

हिरणकश्यपु मार दीन्हों, धरयो नाहिंन धीर।।

बूडते गजराज राखे, कियो बाहर नीर। 

दासि ‘मीरा लाल गिरिधर, दु:ख जहाँ तहँ पीर।।

व्याख्या : इस दोहा/पद में मीरा बाई कहती हैं कि हे श्री कृष्ण (हरी) तुम सभी लोगों के संकट को दूर करो। जिस तरह आपने द्रोपती की लाज बचाने के लिए उसकी चीर को बढ़ाते गए। आपने अपने भक्त के लिए नरसिंग का रूप धरा और हिरणकश्यपु को मार दिया। जिस तरह पानी में डूबते हुए हांथी की रक्षा की। उसी तरह दासी मीरा के भी दुखों पर दूर करो गिरधर। 

 

दोहा/पद: 8 

जब के तुम बिछुरे प्रभु मोरे कबहूँ न पायों चैन।।

सबद सुनत मेरी छतियाँ काँपे मीठे-मीठे बैन।

बिरह कथा कांसुं कहूँ सजनी, बह गईं करवत ऐन।।

कल परत पल हरि मग जोंवत भई छमासी रेण।

मीराँ के प्रभु कबरे मिलोगे, दुःख मेटण सुख देण।।  

व्याख्या : इस दोहा/पद में श्री कृष्ण भक्त मीरा बाई कहती हैं  हे प्रभु कित्नते दिनों से आपके दर्शन नहीं हुए हैं , इसलिए आपके दर्शन की लालसा से मेरे नेत्र दुःख रहे हैं। जब से आप मुझसे अलग हुए हैं, मैने कभी चैन नही पाया हैं। कोई भी आवाज होती हैं तो मुझे लगता हैं आप आ रहे हैं, आपके दर्शन के लिए मेरा ह्रदय अधीर हो उठता हैं। और मुख से मीठे वचन निकलने लगते हैं। पीड़ा में कड़वे शब्द तो होते ही नही हैं। मीरा कहती हैं, सखी मुझे भगवान से न मिलने की पीड़ा हो रही हैं, मै किसे अपनी विरह व्यथा सुनाऊ, वैसे भी इससे कोई फायदा भी तो नही हैं। इतनी असहनीय पीड़ा हो रही हैं, यदि कांशी में जाकर करवट बदलू तो भी यह कष्ट कम नही होता। पल-पल भगवान् की प्रतीक्षा ही किये रहती हु। उनकी प्रतीक्षा में यह समय बड़ा होने लग गया हैं, एक रात छह  महीने के बराबर लगती हैं , प्रभु जब आप आकर मिलोगे तभी मेरी यह पीड़ा दूर होगी। आपके आने से ही सारा दुःख मिटेगा। 

 

दोहा/पद: 9 

बरसै बदरिया सावन की सावन की मन भावन की।

सावन में उमग्यो मेरो मनवा भनक सुनी हरि आवन की।।

उमड घुमड चहुं दिससे आयो, दामण दमके झर लावन की।

नान्हीं नान्हीं बूंदन मेहा बरसै, सीतल पवन सोहावन की।।

मीरां के प्रभु गिरधर नागर, आनन्द मंगल गावन की।। 

व्याख्या : मीरा बाई कहती हैं ; मन को लुभाने वाली सावन की रितु आ गई है और बादल बरसने लगे हैं। मेरा हृदय उमंग से भर उठा है। हरि के आने की संभावना जाग उठी है। मेध चारों दिशाओं से उमड़-घुमड़ क़र आ रहे हैं, बिजली चमक रही है और नन्हीं बूंदों की झड़ी लग गई है। ठण्डी हवा मन को सुहाती हुई बह रही है। मीरा के प्रभु तो गिरधर नागर हैं, सखि आओ उनका मंगल गान करें।

 

दोहा/पद: 10  

पग घूँघरू बाँध मीरा नाची रे। 

मैं तो मेरे नारायण की आपहि हो गई दासी रे। 

लोग कहै मीरा भई बावरी न्यात कहै कुलनासी रे।।

विष का प्याला राणाजी भेज्या पीवत मीरा हाँसी रे। 

‘मीरा’ के प्रभु गिरिधर नागर सहज मिले अविनासी रे।।

व्याख्या : मीरा अपने पैरों मे घुंघरू बांध नाचती हैं, वे प्रभु की दासी हो गई, लोग कहते हैं वे पागल हो गई। रिश्तेदार उनको कुलनाशी कहते हैं, राणा ने उनके लिए विष भेजा जिसे वह हंसते हुए पी गई, मीरा के प्रभु अविनाशी हैं जो उन्हें सहज ही प्राप्त हो गए हैं।

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