मजदूर दिवस पर कुछ कविताएँ | Poem on Labour Day Hindi | Mazdoor Diwas Kavita

Mazdoor Diwas Kavita

World Labour Day: मजदूर दिवस पर कुछ कविताएँ | Mazdoor Diwas Kavita Hindi – Poem on Labour Day In Hindi – अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस हर वर्ष 1 मई को मनाया जाता है इसे मई दिवस भी कहते हैं। आज हम मजदूर दिवस पर मज़दूरों के महत्त्व उनके सम्मान पर कुछ कविताएँ लाये हैं। आपको जरुर पसंद आएंगी –

Poem on Labour Day Hindi | Mazdoor Diwas Kavita

Mazdoor Diwas Kavita #1

“मजदूर दिवस”

धूप कड़ी हो यां आँधी बारिश
चाहें कोई त्यौहार या हो कोई दिवस
अपनी मेहनत के नशे में रहता है मस्त
चलो मिलकर उनके सम्मान में
मनाये मज़दूर दिवस !

कमाने दो वक्त की रोटी
जाता है परदेश थोड़े अरमान लिए बस
सोता है कड़ी ज़मी पर नींद आती मस्त
चलो मिलकर उनके सम्मान में
मनाये मज़दूर दिवस !

Mazdoor Diwas Kavita #2

“मजबूर है लाचार नहीं”

कंधों पर बोझ सही पर वो लाचार नहीं
वो मज़दूर है, मज़बूर नहीं
अपने पसीने की खाता है
मिट्टी को सोना बनाता है
शाम को थक कर टूटी झोपड़ी में सो जाता है
यह कहने में उसे शर्म नहीं
वो मजदूर है, मज़बूर नहीं
कंधों पर बोझ सही पर वो लाचार नहीं !!

मेहनत उसकी लाठी है
तभी तो मजबूत उसकी काटी है
टूटी है चप्पल, फटा है जूता
माथे पर पसीना और पैरों पर छाले हैं
वो मजदूर है, मज़बूर नहीं
कंधों पर बोझ सही पर वो लाचार नहीं !!

बांध बनाता, रेल चलाता
पर्वत काट रास्ते बनाता
है शक्ति सामर्थ भरपूर
श्रम करने वाला तू कैसे मजबूर
वो मजदूर है, मज़बूर नहीं
कंधों पर बोझ सही पर वो लाचार नहीं !!

सड़कों पर अलाव जलाकर
ख्वाबों का बिछौना बनाकर
आसमां की चादर बिछाकर ओढ़े
थका हुआ, गहरी नींद सो जाता है
वो मजदूर है, मज़बूर नहीं
कंधों पर बोझ सही पर वो लाचार नहीं !!

चाहें कितनी भी हो परेशानी
वो मज़बूत रहता है
श्रम करने वाला हर व्यक्ति
मज़दूर होता है मज़बूत
वो मजदूर है, मज़बूर नहीं
कंधों पर बोझ सही पर वो लाचार नहीं !!

वो भारत मां का बेटा है
जिसके पसीने ने इस भूमि को सींचा है
वो किसी का गुलाम नहीं
अपने दम पर जीता है
वो मजदूर है, मज़बूर नहीं
कंधों पर बोझ सही पर वो लाचार नहीं !!

 

Mazdoor Diwas Kavita #3

इस सृष्टि को सुन्दर बनाने के लिए, इस जग को सवारने के लिए, इस धरा को स्वर्ग जैसा बनाने के लिए मज़दूर वर्ग की महत्वपूर्ण भूमिका है। हम सभी को उनके इस महत्पूर्ण योगदान के प्रति आभारित रहना चाहियें। उनके कठोर श्रम, उनकी ईमानदारी, और उनके जज्बे का सम्मान करना चाहियें। हम सभी को मज़दूरों के प्रति संवेदनशील होना चाहियें। श्रमिकों के इसी योगदान को बताते हुए लेखक कवी श्री देवराज दिनेश जी ने मज़दूर के भावनाओं को शब्दों के माध्यम से कविता रूप में प्रेषित किया है।

मैं मज़दूर मुझे देवों की बस्ती से क्या ?

मैं मज़दूर मुझे देवों की बस्ती से क्या ?
अगणित बार धरा पर मैंने स्वर्ग बनाए।

अंबर पर जितने तारे, उतनी वर्षों से,
मेरे पुरखों ने धरती का रूप सँवारा।
धरती को सुंदरतम की ममता में ,
बिता चुका है कई पीढ़ियां वंश हमारा।
और अभी आगे आनेवाली सदियों में,
मेरे वंशज धरती का उद्धार करेंगे।
इस प्यासी धरती के हित में ही लाया था.
हिमगिरी चीर, सुखद गंगा की निर्मल धारा।
मैंने रेगिस्तान की रेती धो धोकर,
वंध्या धरती पर भी स्वर्णिम पुष्प खिलाए।
मैं मज़दूर मुझे देवों की बस्ती से क्या ?

अपने नहीं आभाव मिटा पाया जीवन भर,
पर औरों के सभी आभाव मिटा सकता हूं
तूफानों – भूचालों की भयप्रद छाया में,
मैं ही एक अकेला हूं जो गा सकता हूं।
मेरे “मैं” की संज्ञा भी उतनी व्यापक है,
इससे मुझ- से अगणित प्राणी आ जाते हैं।
मुझको अपने पर अदम्य विश्वास रहा है,
मैं खंडहर को फिर से महल बना सकता हूं।
जब-जब भी मैंने खंडहर आबाद किए हैं,
प्रलय-मेघ, भूचाल देख मुझको शरमाय।
मैं मज़दूर मुझे देवों की बस्ती से क्या ?

युगों-युगों से इन झोपड़ियों में रहकर भी,
औरों के हित लगा हुआ हूं महल सजाने।
ऐसे ही मेरे कितने साथी भूखे रह,
लगे हुए हैं औरों के हित अन्नू उगाने।
इतना समय नहीं मुझको जीवन में मिलता,
अपनी खातिर सुख के कुछ सामान जुटा लूं।
पर मेरे हित उनका भी कर्तव्य नहीं क्या ?
मेरी बाहें जिनके भरती रही खजाने,
अपने घर के अंधकार की मुझे न चिंता,
मैंने तो औरों के बुझते दीप जलाए।

मैं मज़दूर मुझे देवों की बस्ती से क्या ?
अगणित बार धरा पर मैंने स्वर्ग बनाए।

– देवराज दिनेश

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