Gulzar Shayari ~ गुलज़ार साहब की कुछ मशहूर शायरी हिंदी में | Gulzar Ki Shayari

Gulzar Shayari

मुझे खर्ची में पूरा एक दिन, हर रोज़ मिलता है
मगर हर रोज़ कोई छीन लेता है,
झपट लेता है, अंटी से
कभी खीसे से गिर पड़ता है तो गिरने की
आहट भी नहीं होती,
खरे दिन को भी खोटा समझ के भूल जाता हूँ मैं
गिरेबान से पकड़ कर मांगने वाले भी मिलते हैं !


आदमी बुलबुला है पानी का
और पानी की बहती सतह पर टूटता भी है, डूबता भी है,
फिर उभरता है, फिर से बहता है,
न समंदर निगला सका इसको, न तवारीख़ तोड़ पाई है,
वक्त की मौज पर सदा बहता आदमी बुलबुला है पानी का।


देखो, आहिस्ता चलो, और भी आहिस्ता ज़रा
देखना, सोच-सँभल कर ज़रा पाँव रखना,
ज़ोर से बज न उठे पैरों की आवाज़ कहीं.
काँच के ख़्वाब हैं बिखरे हुए तन्हाई में,
ख़्वाब टूटे न कोई, जाग न जाये देखो,
जाग जायेगा कोई ख़्वाब तो मर जाएगा


आदतन तुम ने कर दिये वादे
आदतन हम ने ऐतबार किया
तेरी राहों में हर बार रुक कर
हम ने अपना ही इन्तज़ार किया
अब ना माँगेंगे जिन्दगी या रब
ये गुनाह हम ने एक बार किया

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