ज़िन्दगी ये तेरी खरोंचे है मुझ पर, या तू मुझे तराशने की कोशिश में है !
तुझे बेहतर बनाने की कोशिश में,
तुझे से वक्त नहीं दे पा रहे हम !
माफ़ करना ए ज़िन्दगी,
तुझे ही नहीं जी पा रहे हम !
थोड़ा सा रफू करके देखिये ना…
फिर से नयी सी लगेगी
आखिर ज़िन्दगी ही तो है…
लगता है ज़िन्दगी आज खफा है ….
चलिए छोड़िये, कोनसी पहली दफा है !
वक़्त रहता नहीं कही टिक कर
आदत इसकी भी आदमी सी है
धागे बड़े कमजोर चुन लेते हैं हम,
और फिर पूरी उम्र गांठ बंधने में ही निकल जाती है !!
एक सपने के टूट कर चकनाचूर हो जाने के बाद,
दूसरे सपने देखने के हौंसले को ज़िन्दगी कहते हैं!
ज़िन्दगी हर पल ढलती है, जैसे रेत मुट्ठी से फिसलती है,
शिकवे कितने भी हो किसी से, फिर भी मुस्कराते रहना,
क्योंकि ये ज़िन्दगी जैसी भी है, बस एक ही बार मिलती है।
ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा …
क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा ..!
तकलीफ खुद ही कम हो गई,
जब अपनों से उम्मीदें कम हो गई !
बहुत ही सुन्दर रचना ।