ज्ञान की परख ~ Inspirational Story In Hindi

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Best Inspirational Story In Hindi “Gyan Ki Parakh” is about to consequences of arrogance of your knowledge and boastfulness of your knowledge and the consequences of not trusting your knowledge. 

प्रेरणादायक हिंदी कहानियों की श्रंखला में आज एक और Inspirational Story In Hindi को शामिल करते हैं “ज्ञान की परख” – इस कहानी में अपने ज्ञान को लेकर अहंकार और अपने ज्ञान की डींग हांकने के अंजाम और अपने ज्ञान पर भरोसा न करने के अंजाम को बताया है।

“ज्ञान की परख”

Inspirational Story In Hindi

राजा विक्रमादित्य सच्चे ज्ञान के बहुत बड़े पारखी थे, तथा ज्ञानियों की बहुत क़द्र करते थे। एक दिन राजा विक्रमादित्य एक वन में विचरण कर रहे थे, तभी उनके कानों में दो आदमियों की बातचीत के कुछ अंश सुनाई पड़े। उनकी बातों से राजा को समझ में आ गया कि उनमें से एक ज्योतिषी है तथा उसने चंदन का टीका भी लगा रखा था। वह ज्योतिष अपने दोस्त से बोला मैंने ज्योतिष का पूरा ज्ञान अर्जित कर लिया है और अब मैं तुम्हारे भूत वर्तमान और भविष्य के बारे में सब कुछ स्पष्ट बता सकता हूं। दूसरा व्यक्ति बोला, मुझे कोई रुचि नहीं है।

यह ज्योतिष उस आदमी से अपने ज्योतिष ज्ञान की प्रसंशा करने लगा, और बोला तुम मेरे ज्ञान पर भरोसा करो। दूसरा व्यक्ति बोला, अच्छा तुम मेरी भूत और वर्तमान से पूरी तरह परिचित हो और इसलिए सब कुछ बता सकते हो पर अपने भविष्य के बारे में जानने की मेरी कोई भी इच्छा नहीं है। तुम अपना ज्ञान अपने तक ही सीमित रखो।

तभी ज्योतिष की नजर जमीन पर पड़े पद चिन्हों पर गई और उसने कहा, यह पद चिन्ह किसी राजा के हैं और सत्यता की जांच तुम खुद कर सकते हो। ज्योतिष कहने लगा, राजा के पांव में ही कमल का चिन्ह होता है जो यहां नज़र आ रहा है। उसके दोस्त ने सोचा की सत्यता की जांच कर ली जाए वरना यह ज्योतिषी बोलता ही रहेगा। और वह व्यक्ति बोला ठीक है, हम सत्यता की जांच कर लेते हैं। दोनों जंगल में अंदर आते गए जहां पद चिन्ह समाप्त होते थे वही एक लकड़हारा खड़ा था तथा कुल्हाड़ी से एक पेड़ काट रहा था।

ज्योतिषी ने उस लकड़हारे से उसके पाँव दिखाने को कहा। जब लकड़हारे ने अपने पाँव दिखाए तो ज्योतिषी का दिमाग चकरा गया। लकड़हारे के पाँव पर प्राकृतिक रूप से कमल बना हुआ था। ज्योतिषी ने उस लकड़हारे का असली परिचय पूछा तो वह लकड़हारा बोला कि उसका जन्म ही एक लकड़हारे के घर में हुआ है। वह कई वर्षों से यही काम कर रहा है और उसके बाप दादे भी यही काम करते थे।

ज्योतिषी सोच रहा था कि ऐसा कैसे हो सकता है और यह व्यक्ति लकड़हारे का काम क्यों कर रहा है। ज्योतिष के अनुसार इसके पाँव में कमल का पद चिन्ह हैं तो निश्चय ही इसे राजा होना चाहियें। अब उसका विश्वास अपने ज्योतिष ज्ञान से उठने लगा। वह अपने मित्र से बोला चलो चल कर राजा विक्रमादित्य के पांव देखते हैं अगर उनके पांव में कमल का चिन्ह नहीं हुआ तो मैं समझूंगा कि ज्योतिष शास्त्र झूठा है और मेरा सारा अध्ययन बेकार चला गया।

दोनों उज्जैन नगरी की और चल दिए। जब वो राजमहल पहुंचे तो उन्होंने विक्रमादित्य से मिलने की इच्छा जताई। राजा से सैनिक उन्हें राजा से मिलवाने ले गए। राजा जब सामने आए तो उन्होंने उनसे अपना पैर दिखाने की प्रार्थना की।

राजा विक्रम का पैर देखकर ज्योतिषी सन्न रह गया। राजा के पांव साधारण मनुष्य के पांव जैसे थे। आड़ी तिरछी रेखाएं थी और कोई कमल चिन्ह नहीं था। ज्योतिष को अपने ज्योतिष ज्ञान पर ही नहीं बल्कि पूरे ज्योतिष शास्त्र पर संदेह होने लगा। वह राजा से बोला महाराज ज्योतिष कहता है कि कमल चिन्ह जिसके पांव में मौजूद होगा वह व्यक्ति राजा होगा। पर यह सरासर असत्य है। जिसके पांव पर मैंने यह चिन्ह देखा वह पुश्तैनी लकड़हारा है और दूर-दूर तक उसका संबंध राजघराने से नहीं है। पेट भरने के लिए जी तोड़ मेहनत करता है तथा हर सुख सुविधा से वंचित हैं। दूसरी ओर आप जैसा चक्रवर्ती सम्राट है जिसके भाग्य में सम्पूर्ण सुख देने वाली हर चीज है। जिसकी कीर्ति दूर-दूर तक फैली हुई है। आपको राजाओं का राजा कहा जाता है, मगर आपके पांव में ऐसा कोई चीज मौजूद नहीं है।

ज्योतिष की बात सुनकर राजा को हंसी आ गई और उन्होंने पूछा, क्या ज्ञान तथा विद्या पर से तुम्हारा विश्वास उठ गया ? ज्योतिष ने जवाब दिया, बिल्कुल महाराज, मुझे अब रत्ती भर भी ज्योतिष शास्त्र पर विश्वास नहीं रहा। उसने राजा से विनम्रता पूर्वक विदा लेते हुए अपने मित्र से चलने का इशारा किया।

जब वो चलने को हुआ तो राजा ने उसे रुकने को कहा। दोनों ठिठक कर रुक गए। राजा विक्रमादित्य ने एक चौक मंगवाया तथा पैरों के तलवे को रगड़ने, जिससे उनके पैरों की चमड़ी उतर गई और अंदर से कमल का चिन्ह स्पष्ट हो गया। विक्रम ने कहा है, ज्योति जी महाराज आपके ज्ञान में कोई कमी नहीं है लेकिन आपका ज्ञान तब तक अधूरा रहेगा जब तक आप अपने ज्ञान की डींग हाकते रहेंगे और उसकी सचाई की परख करते रहेंगे। मैंने आपकी बातें सुन ली थी और मैं ही जंगल में लकड़हारे के भेष में आपसे मिला था। मैंने आप के विद्वान होने की जांच के लिए अपने पांवों पर खाल चढ़ा ली थी ताकि कमल की आकृति ढक जाए। आपने कमल की आकृति नहीं देखी तो आपका विश्वासी अपनी विद्या से उठ गया। यह अच्छी बात नहीं है। ज्योतिषी समझ गया कि राजा क्या कहना चाहते हैं उसने तय कर लिया कि वह सच्चे ज्ञान की जांच के परख से तथा बड़बोलेपन से परहेज करेगा।

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